tag:blogger.com,1999:blog-90574889042615942332024-03-14T08:54:55.094+05:30प्रगतिशील सोच ̶ सामाजिक विषमताऐं एवं अन्य मुद्देDEEPAK TOMARhttp://www.blogger.com/profile/03116764942380673797noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-9057488904261594233.post-71183807981347987992012-06-26T16:26:00.001+05:302012-06-26T16:26:12.903+05:30हमारे जीवन भक्षक<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<span style="color: #0c343d;">हमारा एक छोटा सा शांतिपूर्ण शहर शामली जिसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ग्रामीण अंचल में बह रही विकास की बयार का प्रतीक माना जाता रहा है,पिछले कुछ दिनों से कहीं और चाहे प्रगति कर रहा हो या न कर रहा हो परन्तु एक क्षेत्र में निरन्तर और सतत् उन्नति किये जा रहा है। मनुष्य के जीवन और स्वास्थ्य से कथित चिकित्सकों द्वारा खिलवाड किया जाना यहाँ एक परम्परा बनता जा रहा है। यहाँ अवैध चिकित्सा की ये धारदार और जानलेवा बेडियाँ, जिनमें एक बार जकडे जाने पर बचाव लगभग नामुमकिन हो जाता है, टूटने का नाम ही नहीं लेतीं। गलत, अकुशल और अभावपूर्ण चिकित्सा का धीमे धीमे चढने वाला ये जहर कितने अमूल्य जीवन लील चुका है, इसका हिसाब तक भी लगा पाना मुमकिन नहीं है। और हिसाब तो उन आँसुओं का भी नहीं लगाया जा सकता जो लापरवाही की वजह से जान गँवा बैठे व्यक्ति के उन परिजनों को बहाने पडते हैं जो लाचार, बेबस और अन्धे गूँगे बने अपनी ही आँखों के सामने अपनों की मौत का तमाशा देखते हैं। जो करना तो बहुत कुछ चाहते हैं मगर लाचारी उनके हाथ बाँध देती है। चिकित्सकों को भगवान मानने वाले इन लाचार लोगों को चिकित्सकों में तो ईश्वर नहीं मिलता मगर चिकित्सक इन्हें ईश्वर से जरूर मिला देता है।</span><br style="color: #0c343d;" /><span style="color: #0c343d;">अगर सिर्फ शामली की ही बात की जाए तो यहाँ पर शायद ही कोई ऐसी गली हो जहाँ किसी झोलाछाप डॉक्टर की दुकान चलती ना मिले। स्वास्थ्य के ये स्वयंभू ठेकेदार न सिर्फ बीमारों और लाचारों की सेहत से खिलवाड करते हैं बल्कि उनका मानसिक उत्पीडन भी करते हैं। यह सब स्वास्थ्य विभाग की नाक के ऐन नीचे या फिर शायद मिलीभगत से होता है। इसीलिए तो बार बार शिकायती अर्जियाँ भेजते रहने पर भी ऐसे फर्जी डॉक्टरों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होती और अगर मजबूरी में या दबाव में आकर कोई कार्यवाही करनी भी पडती है तो वो ठोस नहीं होती। अक्सर ये कार्यवाही भी एक मजाक ही होती है। शामली में ही पिछले दिनों ऐसे कई फर्जी दवाखानों पर पुलिस द्धारा सी०एम०ओ० के नेतृत्व में रेड डाली गई थी। जिन चार दवाखानों पर ये रेड डाली गई थी उनमें से दो तो बाकायदा नर्सिंग होम बनाकर संचलित किये जा रहे थे। दीगर बात यह है कि इनमें से ही एक नर्सिंग होम लाइ௨–௨इन के दो साल पहले हुए उदघाटन समारोह में पुलिस और स्वास्थ्य विभाग के कई उच्चाधिकारियों एवं समाज के स्थानीय ठेकेदारों ने बढ–चढ कर हिस्सा लिया था। नर्सिंग होम के छद्म रूप में पैदा होने वाली इस सडाँध की स्थापना के समय से ही स्थानीय प्रशासन को जानकारी थी। आखिर यह तो नहीं हो सकता कि एस०डी०एम० आवास से मात्र सौ मीटर की दूरी पर चलने वाला ये जानलेवा खिलवाड कानून की नजरों में न आया हो। मगर ऐसा न सिर्फ हुआ बल्कि दो साल तक होता रहा। </span><br style="color: #0c343d;" /><span style="color: #0c343d;">और फिर एक दिन छापे मारकर इन नर्सिंग होम्स को सीज कर दिया गया। मगर ये क्या ? स्थायी रूप से बन्द कर दिये जाने के सरकारी दावों के हफ्ते भर के अन्दर ही ये कसाईखाने नाम बदल कर फिर से चलाए जाने लगे। और वो भी बिना जगह बदले। स्थानीय लोगों की ये आम राय है कि स्थानीय प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग को इसके लिए अच्छा खासा आर्थिक मूल्य चुकाया गया है। </span><br style="color: #0c343d;" /><span style="color: #0c343d;">इस तरह की घटनाऐं जरायम कारोबार करने वालों के लिए हौसला अफजाई का मरहम होती हैं। और नतीजा ये होता है कि समाज में ऐसे अवांछ्ति लोगों के हौसले और भी बुलन्द होते चले जाते हैं। ये लोग बीमार व्यक्ति को बिस्तर से उठाकर चिता पर लिटा देने का पेशा करते हैं। यह सिर्फ हमारे ही शहर की बात नहीं है। ऐसी घटनाऐं और ऐसे नर्सिंग होम्स जो हमारे समाज में हमारे ही बीच रहकर हमें अपंग बनाते हैं और हमारी रगों में दौडते हुए खून का पानी की तरह अपने जमीर से सौदा करते हैं, आपको हर शहर में हर नुक्कड पर मिल जाऐंगे। डॉक्टर को भगवान का दर्जा देने वाले हमारे समाज को यह जानना ही होगा कि ऐसे अप्रशिक्षित व्यक्ति जो बी०ए०एम०एस० की डिग्री लेकर आयुर्वेदाचार्य कहे जाते हैं वो एक एम०बी०बी०एस० या एम०डी० या एम०एस० डॉक्टरों की तरह ऐलोपैथिक दवाइयों की जानकारी नहीं रखते। बडे–बडे दावे करने वाले प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग को भी अपनी जिम्मेदारी के प्रति सतग और सतर्क होना ही पडेगा। यदि जल्दी ही ऐसा ना हुआ तो मौत का ये अवैध कारोबार अपनी जडें यूँ ही फैलाता रहेगा और मासूम जिन्दगियों को लीलता रहेगा।</span></div>
</div>DEEPAK TOMARhttp://www.blogger.com/profile/03116764942380673797noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9057488904261594233.post-66943749802398848422012-06-24T11:06:00.000+05:302012-06-24T11:09:22.201+05:30भ्रष्टाचार - एक बीमारी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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हमारी प्राथमिकता है एक ऐसी सोच का उन्मूलन जो हमें पतन के गर्त में धंसाऐ चली जा रही है। ये जहर है – भ्रष्टाचार। भ्रष्टाचार एक ऐसी दीमक है जो न सिर्फ समाज की जडों को खोखला करती है बल्कि इसे बडी ही तेजी से कुचलती और नष्ट करती चली जाती है। हम लोग चाह कर भी इससे बच नहीं पाते और इस निरंतर टीस देने वाली विडंबना से रोज कहीं ना कहीं दो–चार होते हैं। यह हमारे समाज में गहराई तक फैल चुकी कैंसर की वो बीमारी है जिससे बचाव का कोई रास्ता फिलहाल किसी को भी सुझाई नहीं पड रहा। यह गंदगी और घृणा से भरी एक ऐसी मवाद है जो हमारी रगों में कब दौडने लगती है, हमें पता ही नहीं चलता। और जब तक हम जान पाऐं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। यह हमारी आत्मा के साथ हमारे मष्तिष्क को भी बीमार कर चुका होता है। और जो इससे बच भी जाता है, वह बेईमानी की बेरहम तलवार से हर लम्हा रत्ती–रत्ती कत्ल किया जाता है। यह दंश उसकी आत्मा को बडी ही बेरहमी से कुचलता है। सिर्फ थोडे से फायदे के लिए ईमान का सौदा कर लिया जाता है, अपनी ही आत्मा का बडी ही बेरहमी से गला घोंट दिया जाता है, मानवता का बार–बार चीरहरण किया जाता है, भावनाओं का बलात्कार किया जाता है। और फिर भी हम अपने आप को सभ्य समाज का निर्माण करने वाली ईश्वरीय कृति समझते हैं तो क्या हमारी अक्ल खुद ही दया की पात्र नहीं ?<br />
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सच का सबक बच्चों को पढाये जाने से पहले ही बेमानी बन चुका होता है। घर के अन्य सदस्यों और बडे बुजुर्गों को झूठ बोलते देख स्वभावतः बच्चे पहले तो इससे घृणा करते हैं पर यही झूठ जब बार–बार उनके कानों में ठूँसा जाता है तो वो इसे सिर्फ स्वीकार ही नहीं करते बल्कि अपने भीतर सहेजते चले जाते हैं। झूठ के इस जहरीले जानवर का फन कुचलने के बजाय इसे इसे दूध पिला–पिला कर पाला जाता है ताकि यह समाज के साथ–साथ हमारी सभ्यता और संस्कृति को भी निगल सके। झूठ का यह छोटा सा दिखने वाला दूब ही आगे चलकर भ्रष्टाचार का वो विशाल वृक्ष बन जाता है जिसकी जडें हर कोने में अपनी पैठ बनाए रखतीं हैं। खास तौर पर यह बात भारतीय समाज के लिए तो कही ही जा सकती है। यहाँ पर ऊपरी तडक–भडक और बाहरी रूप रंग को ही सभ्यता की पहचान माना जाता है। जबकि वास्तव में यही गले–सडे विचार और सर्वोच्च बनने की ख्वाहिश ही हमारी पैसे के प्रति भूख का परिणाम है।<br />
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हमारा दायित्व है कि इस भूख को न सिर्फ खत्म कर दिया जाए, कुचल दिया जाए बल्कि इस घातक रोग का जड से ही सफाया कर दिया जाए ताकि यह दानव हमारे समाज में फिर कभी अपना सर ना उठा सके।<br />
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शेष आगे अन्यत्र ।।।।।।</div>
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